हममें से हर कोई भगवन रामचंद्र की कहानी से भली-भांति परिचित है, की वो किस प्रकार अपने वनवास के १४ कठिन सालो को हसते -मुस्कुराते हुए बिता कर अपने नगरी लौटे थे। अयोधया उनका जनम भूमि था जिसे वो अपने माता-पिता के आज्ञा से, बिना मन में किसी पशोपेक्ष के, सबसे विदा ले लिया था। जब वो और माता सीता,१४ सालों के वनवास के बाद अपने नगरी लौटे, तो पुरे साम्राज्य में ख़ुशी और हर्षो उल्लास का माहौल था। सभी का मन प्रसन्न था। श्री रामचंद्र का जन्म चैत्र (मार्च – अप्रैल) के महीने में, उगते चंद्रमा के नौवें दिन (चैत्र मास, शुक्ल पक्ष, नवमी तिथि) में हुआ था और यह विशेष दिन हर साल श्री रामनवमी के रूप में मनाया जाता है। उन्हें भगवान् विष्णु का सातवां अवतार माना जाता है।
अयोध्या भगवान राम की जन्मभूमि है और अयोध्या में रामनवमी का उत्सव बड़े ही धूम-धाम से बनाया जाता हैं। दूर-दराज से भक्त अयोध्या आते हैं। पवित्र सरयू नदी में भक्त स्नान करते हैं और उसके बाद जन्मदिन समारोह में भाग लेने के लिए राम मंदिर का दौरा करते है, एवं पूजा पाठ में लग जाते है। पूरी अयोधया नगरी को दुल्हन की तरह सजाया जाता है और ऐसा प्रतीत होता है जैसे भगवान् राम आज ही अयोधया नगरी में अवतरित हुए हो। पूरा शहर मेला और से सराबोर होता है। हर मंदिर में घंटिया, भजन और कीर्तन की मधुर ध्वनि मन को मोह लेती है और पुरे अयोधया के वातावरण को भक्तिमय और खुशनुमा बना देती है। अयोध्या का मेला पुरे भारत में मशहूर है। यदि आप राम भूमि अयोध्या के इस जगमगाते पर्व और ,मेले का आनंद लेना चाहते है, तो अभी अपनी रेल टिकट बुक कीजिये। अब आप ट्रेन में खाना भी एडवांस में बुक कर सकते है। अपनी अयोध्या की यात्रा को सुखद और आरामदायक बनाएं।
राम नवमी का त्यौहार घर घर में मनाया जाता है। चैत्र-नवरात्र का ये महीना हर घर में खुशियाँ और सात्विकता लाता है। इन नौ दिनों पर भक्त उपवास करते है और देवी के उन नौ स्वरुप की पूजा भी करते है। रामनवमी का व्रत तीन तरह का होता है। भक्तो को रामनवमी के दौरान आठ प्रहर उपवास का सुझाव दिया जाता है। जिसका अर्थ है कि भक्तों को सूर्योदय से सूर्योदय तक के व्रत का पालन करना चाहिए। राम नवमी व्रत को तीन अलग-अलग तरीकों से मनाया जा सकता है, आकस्मिक (नैमित्तिक) -जिसको बिना किसी कारण के देखा जा सकता है, नित्य (नित्य) – जो बिना हर इच्छा और कामनाओं से वांछनीय होता है, और काम्य- जिसे कोई इच्छा पूर्ति के कामना से रखा जाता है। यह त्योहार कई हिंदुओं के लिए नैतिकता और संस्कारो का प्रतिबिंब के जैसा होता है। भारत में ये त्यौहार प्रसिद्ध है और कुछ जगहों पर जैसे अयोध्या (उत्तर प्रदेश), रामेश्वरम (तमिलनाडु), भद्राचलम (तेलंगाना) और सीतामढ़ी (बिहार) में भक्त रथ-यात्रा (रथ जुलूस) का आयोजन करते हैं, जबकि कुछ जगहों पर इसे भगवान राम और माता सीता की शादी की सालगिरह के त्योहार (कल्याणोत्सव) के रूप में मनाते हैं।
नव दुर्गा की पूजा:
चैत्र नवरात्र में आया यह त्यौहार, हमें नव दुर्गा के उन स्वरूपों की याद दिलाती है जिसे हमने कई धार्मिक ग्रंथो में पढ़ा है और टेलीविज़न पर भी बचपन से देखते आ रहे है। इन नौ दिनों में, हर घरों में देवी के नौ स्वरूपों को पूजा जाता है और दुर्गा शप्तशती की पाठ की जाती है। इस पाठ में दी गई कहानी के अनुसार धरती और तीनो लोको पर मधुकैट, रक्तबीज, अंधक, महिषसुर जैसे असुरों ने कब्ज़ा कर सभी का नाश करना चाहा था। वो इतने ताकतवर थे की समस्त देवतागण भी कुछ न कर पा रहे थे। इस भारी विपदा में सभी देवताओ ने योग और अपने कई शक्तियों का दान करके, पूजा पाठ के माध्यम से, एक ऐसी शक्ति का आवाह्न किया जो देवी दुर्गा के स्वरुप में प्रकट हुई। उन्होंने धरती और तीनो लोको को उन पापी राक्षसो से मुक्त कराया और अपने नौ स्वरूपों से दुनिया को परिचित कराया।
पहला: शैलपुत्री:
सती के रूप में अपने आत्म-प्रदर्शन के बाद, देवी ने पर्वतराज के घर में भगवान हिमालय की बेटी के रूप में जन्म लिया।इसलिए इन्हे शैलपुत्री से सम्बोधित किया जाता है जिसका मतलब है हिमालय की बेटी। सती, भवानी, पार्वती या हेमवती के रूप में भी जाना जाता है, वह माँ प्रकृति का पूर्ण रूप है और ब्रह्मा, विष्णु और महादेव की शक्ति का अवतार है।
दूसरा: ब्रह्मचारिणी
ब्रह्मचारिणी का ये रूप,माता सती के रूप में प्रजापति दक्ष से पैदा हुई देवी हैं और बाद में उन्होंने शिव से विवाह किया। यह उसका अविवाहित, ब्रह्मचर्य रूप है।
तीसरा: चंद्रघंटा
चंद्रघंटा देवी का विवाहित रूप है। शिव से शादी करने के बाद, उसने अपने माथे को घंटी की तरह आकार के आधे चाँद से सजाया, जो उसके नाम की उत्पत्ति के बारे में बताता है। वह एक देवी है जो एक व्यक्ति में साहस को प्रेरित करती है। वह अपने अनुयायियों के लिए शांति का स्वरुप हैं।
चौथा: कुष्मांडा
सिद्धिदात्री का रूप लेने के बाद, देवी देवी सूर्य के अंदर रहने लगीं, जिसके परिणामस्वरूप ब्रह्मांड को सूर्य की ऊर्जा मिली। तब से, देवी के इस रूप को उनकी शक्ति और सूर्य के अंदर रहने की क्षमता के लिए, कुष्मांडा के रूप में जाना जाता है।
पांचवा: स्कंदमाता:
देवी स्कंदमाता को “गॉड ऑफ़ फायर” के रूप में भी पहचाना जाता है।देवी स्कंदमाता को चार हाथों से दर्शाया जाता है। वह अपने ऊपरी दो हाथों में कमल के फूल रखती है। वह अपने एक दाहिने हाथ में बेबी स्कंद को रखती है और दूसरे दाहिने हाथ को अभयमुद्रा में रखती है।
छठा: कात्यायनी
राक्षस महिषासुर को नष्ट करने के लिए, ऋषि कात्यायन की पुत्री, देवों की सहायता के लिए अवतरित हुई थी। वह अपने क्रोध, प्रतिशोध और राक्षसों पर परम विजय के लिए जानी जाती है।
साँतवा: कालरात्रि
कालरात्रि, अर्थात मृत्यु की रात्रि (मृत्यु की रात)। यह देवी का उग्र और सबसे क्रूर रूप है, जिसमें वह राक्षसों सुंभ और निशुंभ को नष्ट करने के लिए प्रकट होती हैं। वह समय की मृत्यु है और स्वयं काल (समय) से अधिक है।
आठवां: महागौरी
महागौरी को पवित्रता और स्वच्छता की देवी के रूप में जाना जाता है। सोलह वर्ष की आयु में देवी शैलपुत्री अत्यंत सुंदर थीं । उनकी अत्यंत सुंदरता के कारण, उन्हें देवी महागौरी के नाम से जाना जाता था।
नौवा: सिद्धिधात्री
ब्रह्मांड की शुरुआत में, भगवान रुद्र ने सृष्टि के लिए देवी माँ आदिशक्ति के अव्यक्त रूप की पूजा की थी। आदिशक्ति के रूप में, देवी मां एक शुद्ध ऊर्जा थीं और उनका कोई रूप नहीं था। वह इस प्रकार शिव के बाएं आधे भाग से सिद्धिदात्री के रूप में प्रकट हुईं।
हनुमान जी की पूजा:
ये वो अध्याय हैं जहा हनुमान जी ने अपनी पूरी ज़िंदगी राम भक्ति में गुजारने का प्रण किया था। वह उनके सानिध्य में रहकर उनकी सेवा करना चाहते थे। और ऐसा ही हुआ। हनुमान जी ने भगवान् राम का साथ कभी न छोड़ा। चाहे वो वनवास हो या फिर माता सीता को रावण के चंगुल से मुक्त करने का कठिन कार्य हो, हनुमान जी ने हमेशा उनका साथ दिया। रामनवमी के अवसर पर सभी हनुमान भक्त मंदिरो में उनकी दर्शन और पूजा हेतु जाते हैं। इस दिन पंचमुखी हनुमान मंदिर में भक्तो की भीड़ देखी जा सकती हैं।
आओ रामनवमी पर घर चले।
त्यौहार का असली मज़ा अपने घर पर सभी परिवारों के साथ हैं। आइये इस त्यौहार का लुत्फ़ इस बार हम घर पर ही उठाए। भारतीय रेलवे ने अयोधया से कुछ विशेष ट्रेन (स्पेशल ट्रैन) चलने का निर्णय लिया हैं। अगर आप अयोद्धया के मेले में शामिल हो कर रामनवमी की खुशियों में शामिल होना चाहते थे तो इन स्पेशल ट्रेंस में भी टिकट बुक कर सकते हैं।
गोरखपुर रेलवे ने अयोध्या में लगने वाले चैत्र रामनवमी मेला के अवसर पर श्रद्धालुओं के लिये 05 से 13 अप्रैल तक गोण्डा-मनकापुर-अयोध्या तथा मनकापुर-गोण्डा-मनकापुर के बीच एक-एक जोड़ी मेला विशेष गाड़ी चलाने का निर्णय लिया है।यह मेला स्पेशल ट्रेन 05 से 13 अप्रैल तक गोण्डा से 23।40 बजे प्रस्थान कर तथा दूसरे दिन मनकापुर से 01।10 बजे छूटकर 02।30 बजे अयोध्या पहुंचेगी। इन ट्रेंस में इ-कैटरिंग की व्यवस्था भी हैं जिससे आप ट्रेन में मनपसंद खाना ऑनलाइन बुक कर सकते हैं।