बिहार राज्य के प्रसिद्धःस्थानों में से एक है सोनपुर का “हरिहर छेत्र”. यहाँ पे कार्तिक पूर्णिमा के दिन से सुप्रसिद्ध “सोनपुर मेला” हर साल लगता है. बिहार में गंगा और गंडक नदी के संगम पर ऐतिहासिक, धार्मिक और पौराणिक महत्व वाला सोनपुर मेला एक महीना चलता है. विश्व प्रसिद्ध यह मेला ‘हरिहर क्षेत्र मेला’ अैर ‘छत्तर मेला’ के नाम से भी जाना जाता है. प्राचीन काल से चली आ रही इस प्रथा के बारे में कई जगहों पर उल्लेख मिलता है. स्थानीय लोगों के अनुसार यह एशिया के सबसे बड़े मेलो में से एक है.
सोनपुर मेले का इतिहास
हरिहरनाथ का मंदिर दुनिया का इकलौता ऐसा मंदिर है जिसमें हरि (विष्णु) और हर (शिव) की एकीकृत मूर्ति है. कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा और गंडक के संगम से जल भर कर बड़ी संख्या में भक्त मंदिर में जल चढ़ाते हैं. परंपरा के अनुसार पुजारी और पुजारिन संगम में एक विशेष छड़ी के साथ स्नान करते हैं. ऐसी मान्यता है कि उस दिन के यहां स्नान करने से गोदान का फल मिलता है और सारे पाप धुल जाते हैं.
वैसे तो इस मेले के बार में बहुत सी कहानियां हैं. मुख्यतः ये कहा जाता है ये मेला प्राचीन समय से पशुओं के विक्रय के लिए आयोजित किया जाता था. ऐसी मान्यता है की इस मेले में चन्द्रगुप्त जैसे पराक्रमी राजा भी आया करते थे. सोनपुर मेला की शुरुआत कब से हुई इसकी कोई निश्चित जानकारी उपलब्ध नहीं है, फिर भी इसे उत्तर वैदिक काल से माना जाता है. महापंडित राहुल सांकृत्यान ने इसे शुंगकाल से माना है. शुंगकालिन कई पत्थर एवं अन्य अवशेष सोनपुर के कई मठ मंदिरों में उपलब्ध रहे है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह स्थल गजेंद्र मोक्ष स्थल के रूप में चर्चित है. अगस्त ऋषि के श्राप से शापित एक राजा हाथी बन गया था जो अकसर गंडक नारायणी नदी में जलक्रीड़ा के लिए जाया करता था. देवल ऋषि के श्राप से गंधर्व से मगरमच्छ बना ग्राह ने हाथी का पैर पकड़ लिया और गहरे नदी धारा में ले जाने लगा. गज एवं ग्राह की यह लड़ाई कई वर्षों तक चली. इस युद्ध को देखनेवाला हार जीत के इस कौतूहल को कौन हारा, कौन जीता के रूप में प्रकट कर रहे थे जो आज भी गंडक किनारे हाजीपुर में कोनहारा घाट के रूप में अवस्थित है, जहां लोग स्नान ध्यान कर सोनपुर स्थित हरिहरनाथ मंदिर में जल अर्पण करते है.
एक अन्य मान्यता के अनुसार धनुष यज्ञ में अयोध्या से बक्सर होते हुए जनकपुर जाते वक्त भगवान राम ने अयोध्या से गंगा एवं गंडक नदी के तट पर अपने अाराध्य भगवान शंकर की मंदिर की स्थापना की थी तथा इस मंदिर में पूजा अर्चना के बाद सीता स्वयंवर में शिव के धनूष को तोड़कर सीता जी का वरन किया था.
एक अन्य मान्यता के अनुसार प्राचीन काल में हिंदू धर्म के दो संप्रदायों शैव एवं वैष्णवों में अक्सर विवाद हुआ करता था, जिसे समाज में संघर्ष एवं तनाव की स्थिति बनी रहती थी, कालांतर में दोनों संप्रदाय के प्रबुद्ध जनों के प्रयास से इस स्थल पर एक सम्मेलन आयोजित कर दोनों संप्रदायों में मेल कराया गया, जिसके परिणाम स्वरूप हरि विष्णु एवं हर शंकर की संयुक्त स्थापित हुई जिसे हरिहर क्षेत्र कहा गया. यूरोपीयन यात्रियों के अनुसार मौर्य काल में खासकर चद्रगुप्त मौर्य ने सोनपुर मेले में अपनी सेना के लिए हाथियों की खरीदारी की थी और यवण सेनापति सेल्यूकस को यूनान लौटते वक्त हाथियों का एक बड़ा फौजी बेड़ा उपहार स्वरूप दिया था. बाद में सेल्यूकस ने अपनी पुत्री से चंद्रगुप्त की शादी कर दी और मेगास्थनीज नामक यूनानी विद्वान को पाटलिपुत्र के दरबार में रखवा दिया था. मेगास्थनीज ह्वेनसांग के यात्रा वृतांतों में भी इस क्षेत्र का उल्लेख मिलता है.
अकबर के प्रधान सेनापति महाराजा मान सिंह ने सोनपुर मेला में खेमा डालकर शाही सेना के लिए हाथी एवं घुड़सवार फौज को तैयार किया था तथा मेले में देसी-विदेशी व्यापारियों से अस्त्र-शस्त्र की खरीदारी की थी. आज भी सोनपुर मेला क्षेत्र में बाग राजा मान सिंह नामक एक स्थान है.
हथुआ, बेतिया, टेकारी तथा दरभंगा महाराज के तरफ से सोनपुर मेला के अंग्रेजी बाजार में नुमाइशे लगायी जाती थी. जहां कश्मीर, अफगानिस्तान, ईरान, लिवरपुल, मैनचेस्टर से बनने बेशकीमती कपड़े एवं अन्य बहुमूल्य सामग्रियों की खरीद बिक्री होती थी. इन बहुमूल्य सामग्रियों में सोने, चांदी, हीरों के जवाहिरात, हाथी दांत की बनी वस्तुएं तथा दुर्लभ पशु-पक्षी यथा तोता, मैना, हिरन, मोर आदि की बाजारें लगती थी और उनकी खरीद बिक्री होती थी. इस दौरान ग्रामीण अर्थव्यवस्था के प्रतीक के रूप में हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला एक बड़े पशु बाजार के रूप में उभरा जिसकी चर्चा महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘वोल्गा से गंगा’ में हरिहरक्षेत्र के रूप में की है.
स्वतंत्रता आंदोलन में भी सोनपुर मेले का विशेष योगदान रहा है. प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बिहारी नायक बाबू कुंवर सिंह ने सोनपुर मेले में ही 1857 में बिहार एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र में अंग्रेजी सम्राज्यवाद के प्रमुख को धाराशायी करने की रूपरेखा तैयार की थी. सोनपुर मेला देश के धार्मिक, सामाजिक समन्वय का प्रमुख आधार क्षेत्र रहा है.
मेला के अवसर पर यहां के साधूगाछी में सभी धर्म संप्रदाय के साधुसंतों यथा कबीर पंथी, दिरयापंथी, रामानंदी, आर्य समाज, सिख संगत के साथ ही सोनपुर का इलाका नाथ संप्रदाय का भी प्रमुख केंद्र रहा है. जहां प्रतिवर्ष इसके बड़े धार्मिक-सांस्कृतिक समागम आयोजित होते रहे है.
सोनपुर मेला २०१८
इस वर्ष भी सोनपुर मेला अपनी परंपराओं एवं विरासतों के साथ सजने लगा है.
- वैसे तो सरकार ने हाथियों की बिक्री पर बैन लगा रखा है लेकिन फिर भी ये मेला हाथी मेला के नाम से भी फेमस है.
- गंगा स्नान के साथ शुरू होने वाला सोनपुर मेला एक महीने के करीब चलता है. पहले आधिकारिक तौर पर मेला सिर्फ 15 दिनों का होता था. लेकिन तब भी 20 से 30 दिनों तक चलता रहता था.
- चिड़ियों के लिए भी अलग से चिड़िया बाजार है. मेला खत्म होने के बाद भी चिड़िया बाजार साल भर के लिए लगा रहता है.
- मेले का एक बड़ा आकर्षण मीना बाजार भी होता है. यहां मुंबई से लेकर दिल्ली और लखनऊ तक का मीना बाजार लगता है.
- मेले के बारे में बात करने पर लोग बताते हैं कि किसी दौर में मेले में सब कुछ बिकता था. यहां तक की गुलाम के तौर पर महिला और पुरुष भी बिकते थे. बदलते वक्त के साथ काफी कुछ बदला है लेकिन सोनपुर मेले अभी भी बरकरार है.
- मेला और साधुओं के बीच का रिश्ता अटूट और अनोखा है. सोनपुर मेले में भी बड़ी संख्या में देश के विभिन्न हिस्सों से साधु आते हैं और मेले का साधु गाछी इलाका भजन-कीर्तन और सप्त साधना का केंद्र बन जाता है.
- मेले में नौका दौड़, दंगल, वाटर सर्फिंग, वाटर के¨नग सहित विभिन्न प्रकार के खेल व प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है।
- मेले में जलेबी प्रमुख्य मिठाई के रूप में बिकती है.
सोनपुर मेला कैसे पहुंचे?
सोनपुर, बिहार की राजधानी पटना से २५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. सोनपुर मेला पहुंचने के लिए आप ट्रैन या बस या किसी भी वहां से जा सकते हैं. पटना से भी लोकल ट्रेंस उपलब्ध है जिनसे आप आसानी से सोनपुर मेले में पहुंच सकते हैं. कुछ प्रमुख ट्रैन हैं:
- ट्रैन संख्या ६३२८४- पटना बरौनी पैसेंजर
- ट्रैन संख्या १५५५०- पटना जयनगर इंटरसिटी
- ट्रैन संख्या ६३२८२- पटना पाटलिपुत्र पैसेंजर
ट्रेंस के अलावा प्राइवेट गाड़ियां भी उपलब्ध हैं जो आपको नव निर्मित JP सेतु से सीधे सोनपुर पहुँचती हैं. बाहर से आने वाले आगंतुक यहाँ हवाई रास्ते से पटना पहुंच कर प्राइवेट गाडी hire करके भी सोनपुर पहुंच सकते हैं.
सोनीपुर मेले में कहाँ रहना है
बिहार पर्यटन बाथरूम के साथ विशेष बुने हुए स्ट्रॉ झोपड़ियों के रूप में मेले में आवास प्रदान करता है। पहले सप्ताह के दौरान, भोजन और करों को छोड़कर प्रति रात 7,000 रुपये की लागत है। मेले के दूसरे सप्ताह के दौरान दर प्रति रात 2,500 रुपये और मेले के तीसरे और चौथे सप्ताह के दौरान 500 रुपये प्रति रात कम हो जाती है। यदि यह विकल्प बहुत महंगा है, आप पटना में रह सकते हैं और मेले की यात्रा कर सकते हैं। यातायात की मात्रा के आधार पर, यात्रा का समय लगभग 30 मिनट से डेढ़ घंटे तक कहीं भी हो सकता है। बिहार पर्यटन पटना में होटल कौटिल्य से मेले के लिए सस्ती सुविधा प्रदान करता है।
यात्रा व्यवस्था और बुकिंग करने के लिए contactbstdc@gmail.com या bihartourism.tours@gmail.com पर ईमेल, या फोन (0612) 2225411 द्वारा बिहार पर्यटन से संपर्क करें।
सोनपुर के समीप अन्य दर्शनीय स्थल
वैशाली जिले में स्थिति बौद्ध धर्म का प्रमुख्य विहार यहाँ से काफी नज़दीक है. सोनपुर पहुंचने वाले लोग यहाँ भी जाते हैं.